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प्रथम भाव से विचारणीय विषय 

  • Writer: Shastri Sanju Sharma
    Shastri Sanju Sharma
  • Nov 30, 2019
  • 2 min read

प्रथम भाव-

प्रथम भाव जन्मकुंडली का सबसे महत्वपूर्ण भाव है| इसे भी कहा जाता है| लग्न का अर्थ है- लगा हुआ युक्त अथवा संलग्न| किसी भी व्यक्ति के जन्म के समय पूर्वी क्षितिज पर जो राशि विद्यमान होती है, वही उस व्यक्ति का लग्न बन जाती है| लग्न क्यों महत्वपूर्ण है? इसलिए क्योंकि इसी राशि विशेष के काल में जन्म लेकर एक शिशु माँ के गर्भ से बाहर आता है और जिस क्षण वह बाहर आता है, उसी क्षण वह आकाश में स्थित राशि, नक्षत्र व ग्रहों की विशेष स्थिति का प्रभाव ग्रहण करता है| क्योंकि जन्म के समय जिस राशि के तारे पूर्वी क्षितिज पर उदय होते हैं, वही प्रथम भाव में स्थापित की जाती है| इसके पश्चात ही यह ज्ञात होता है कि अन्य राशियाँ किन भावों में स्थित होंगी| कुंडली में लग्न का उतना ही महत्व है जितना एक मानचित्र में चुम्बकीय उत्तर दिशा का| जिस प्रकार किसी स्थान के मानचित्र को उत्तर दिशानुसार निर्धारित करते हैं, उसी प्रकार जन्मकालीन आकाशीय मानचित्र(जन्मकुंडली) को पूर्वी क्षितिज पर उदय तारों व उनके अंशों के अनुसार निर्धारित किया जाता है| यही से कुंडली का प्रारंभ होता है| बिना लग्न के जन्मकुंडली अर्थहीन है|

प्रथम भाव को-

लग्न, आत्मा, शरीर, होरा, उदय, आदि, के नाम से भी जाना जाता है| इस भाव से व्यक्ति के शरीर, रूप, रंग, आकृति, स्वभाव, ज्ञान, बल, सुख, यश, गौरव, आयु तथा मानसिक स्तर का विचार किया जाता है| लग्न को भावों में विशिष्ट श्रेणी प्रदान की गई है| लग्न एक केंद्र भी है, तो त्रिकोण भी| लग्न भाव का स्वामी(लग्नेश), चाहे वह नैसर्गिक पापी ग्रह हो या शुभ ग्रह, हमेशा शुभ ही माना जाता है| अतः लग्न व लग्नेश को फलित ज्योतिष में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है| इस भाव का कारक ग्रह सूर्य है, क्योंकि सूर्य ही जातक का जनक व उसकी आत्मा का अधिष्ठाता है

जन्मकुंडली के अनुसार यदि ग्रह स्वग्रही हो कर बैठा हो या शुभ ग्रह की दृस्टि से युक्त हो तो उस भाव की वृद्धि करता है तथा पाप या शत्रु ग्रह की दृष्टि हो तो उस भाव की हानि करता है यह जन्मकुंडली में विचारणीय होता है |

जन्मकुंडली के प्रथम भाव से जातक के रूप , रंग , चिन्ह जाती ,संस्कार ,सभ्यता ,सुख ,दुःख ,साहस , जातक के वाचाल शक्ति का प्रभाव प्रथम भाव से विचार किया जाता है यदि प्रथम भाव मजबूत हो और और शुभ ग्रहों से युति बनी हो तो जातक के अंदर एक आदर भाव और रूप, रंग , और चेहरे पर एक मंद मुस्कान बनी रहती है | यदि प्रथम भाव पर पापी या अशुभ , शत्रु ग्रहों से योग बना हो तो जातक हर प्रकर से पीड़ित रहता है।

संजू शास्त्री

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